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इन दो महान युद्धनीतिकार एवं योद्धाओं ने महाभारत युद्ध मे लढने से मना कर दिया

इन दो महान योद्धाओ ने महाभारत युद्ध मे भाग नहीं लिया 


महाभारत का युद्ध कोई सामान्य युद्ध नहीं बल्कि हिंदुस्तान के इतिहास का सबसे प्राचीन युद्ध माना जाता है जिसमे देश विदेश के योद्धाओं ने भाग लिया था क्योंकि कौरवों के पास इतनी शक्ति होने के बाद भी उन्हे अपनी सेना पर पूर्ण भरोसा नहीं था। इसीलिए उन्होंने भारतवर्ष सहित आजू बाजू के सभी देशों के राजाओं को अपने पक्ष से लढने के लिए बुलाया था। 


MAHABHARAT KI KAHANI




जबकि पांडवों की और से चंद हिंदुस्तानी योद्धा ही शामिल हुए थे। इस युद्ध ने पूरी भारतीय संस्कृति को प्रभावित करके रख दिया था इस युद्ध ने लोगों को एक बात सिखाई कि जब आपके ऊपर ईश्वर का हाथ होता है तब आपको दुनिया की कोई ताकत जितने से नहीं रोक सकती ठीक ऐसा ही पांडवों के साथ भी हुआ क्योंकि उनके साथ साक्षात भगवान कृष्ण थे। 

लेकिन क्या आप जानते है की उस समय के दो महान योद्धा एवं युद्धनीतिकर महाभारत युद्ध मे शामिल नहीं हुए अपने बल से एवं युद्धनीति से वो महाभारत का परिणाम बदल सकते लथे लेकिन वो दो योद्धा इस प्रलयकारी महाभंयकर युद्ध  से दूर रहे 





कृष्ण ने प्रतिज्ञा तोड़कर उठाया सुदर्शन 

 महाभारत युद्ध मे  कि कृष्ण जी ने युद्ध में एक हथियार तक नहीं उठाया इसके बावजूद पांडवों को युद्ध में विजय मिल गयी थी । श्रीकृष्ण ने ऊढ़ के पहलेही प्रतिज्ञा की थी वो इस युद्ध मे शस्त्र नहीं उठायेंगे। 

लेकिन अपको जानकर हैरानी होगी की श्रीकृष्ण ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एक बार युद्ध मे अपना शस्त्र यानि सुदर्शन उठाया था। श्रीकृष्ण की प्रतिज्ञा सुआँकर गंगापुत्र भीष्म ने भी प्रतिज्ञा की थी वो श्रीकृष्ण को शस्त्र उआठने के लिए मजबूर कर देंगे। 
एक भक्त के इस प्रतिज्ञा ने श्रीकृष्ण को धर्म संकट मे डाल दिया धर्म अपने प्रतिज्ञा के लिए भीष्म मृत्यु को भी अपना सकते थे लेकिन अपनी प्रतिज्ञा कभी तोड़ नहीं सकते थे। युद्ध मे जब कौरवों का पडला भारी पड़ने लगा तब अर्जुन को अपने सामर्थ्य को याद दिलाने के लॉइए श्रीकृष्ण ने अपनी लीला राचाई जिससे भीष्म के प्रतिज्ञा पूरी हो गई और  अर्जुन भी अपने पूर्ण क्षम से युद्ध कर पाया 
अर्जुन और भीष्म जब युद्ध मे आमने सामने आए तो भीष्म ने एक से बढ़ाकर एक शस्त्र चलकर अर्जुन को भीष्म ने अर्जुन को हैरान कर दिया अर्जुन के बाद उन्होंने अपने तीरों से सारथी कृष्ण को भी परेशान करना शुरू किया ऐसे मे श्रीकृष्ण क्रोधित हो गए और उन्होंने भीष्म को मारने के लिए अपना सुदर्शन उठा किया। अपने प्रभु का यह रूप देखकर भीष्म उनके सामने नतमस्तक हो गए, उन्होंने श्रीकृष्ण को युद्ध मे शस्त्र उठाने के लिए मजबूर कर दिया था। 
इधर अर्जुन को मन को यह बात चुभ गई के उसके होते हुए श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर शस्त्र उठान पडा अर्जुन ने श्रीकृष्ण के पैर छूए और उन्हे शांत होने को कहा और वचन दिया की युद्ध जीतने के लिए अब वो अपनी पूरी क्षमता से लढेंगे और श्रीकृष्ण को फिर कभी शस्त्र उठाने की जरूरत नहीं पड़ेगी 

लेकिन क्या आप जानते है धर्म के इस युद्ध में दो शक्तिशाली योद्धाओं के नाम ही मौजूद नहीं है। अपने बल और सामर्थ्य से युद्ध का परिणाम पलटने की क्षमता रखने वाले यह योद्धा युद्ध मे सामील ही नहीं हुए।   बलराम- महाभारत युद्ध में क्यो शामिल नही हुए

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बलराम महाभारत युद्ध मे क्यों शामिल न यहीं हुए 


बलराम महाभारत कालीन सबड़े बढ़िया गदा युद्ध के योद्धा थे। उन्होंने कौरव और पांडवों को गदा युद्ध सिखाया था। भीम और दुर्योधन को गढ़ युद्ध मे माहिर उन्होंनेही बनाया था वो दोनों उनके प्यारे शिष्य थे। अपनी बहन सुभद्रा के लिए उन्होंने दुर्योधन को ही पसंद किया था लेकिन श्रीकृष्ण ने बड़ी चतुराई से सुभद्रा और अर्जुन का विवाह रचा था। 

कौरव और पांडवों के बीच के युद्ध के हालत सुनकर वो व्यतीत हो गए ऊअनहोने इस युद्ध को टालने की भी कोशिश की लेकिन उनकी कोशिशे  असफल रही। अपने सगे सम्बधी और शिष्यों के इस युद्ध मे UNHE किसी एक पक्ष को चुनना उनके कष्टदायी बन गया। अपने सगों मे इस प्रकार के युद्ध को वो अपने आँखों से देख नहीं सकते थे 


भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम इस युद्ध के दौरान धर्म संकट में फँस गए थे  बलराम ने दुर्योधन के पास जाकर उसे युद्ध ना करने की सलाह दी लेकिन दुर्योधन ने उनकी एक ना सुनी थी इस तरह धर्म संकट में पड़ कर बलराम जी युद्ध के समय तीर्थ यात्रा के लिए निकल गए थे।



विदुर - विदुर महाभारत युद्ध में क्यो शामिल नही हुए

विदुर जी धर्मराज के अवतार थे। मांडव्य ऋषि ने धर्मराज को श्राप दे दिया था इसी कारण वे सौ वर्ष पर्यन्त शूद्र बन कर रहे। एक समय एक राजा के दूतों ने मांडव्य हषि के आश्रम पर कुछ चोरों को पकड़ा था। दूतों ने चोरों के साथ मांडव्य ऋषि को भी चोर समझ कर पकड़ लिया। राजा ने चोरों को शूली पर चढ़ाने की आज्ञा दी। उन चोरों के साथ मांडव्ठ ऋषि को भी शूली पर चढ़ा दिया गया  मांडव्य ऋषि ने धर्मराज के पास  पहुँच कर प्रश्न किया कि तुमने मझे मेरे किस पाप के कारण शूली पर चढ़वाया? धर्मराज ने कहा कि आपने बचपन में एक टिड्डे को कुश को नोंक से छेदा था, इसी पाप में आप को यह दंड मिला। ऋषि बोले - "वह कार्य मैंने अज्ञानवश किया था और तुमने अज्ञानवश किये गये कार्य का इतना कठोर दंड देकर अपराध किया है। अतः तुम इसी कारण से सौ वर्ष तक शूद्र योनि में जन्म लेकर मृत्युलोक में रहो।" इसी श्राप के कारण धर्मराज को धरती पर जन्म लेना पडा। 

विदुर महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे। लेकिन श्राप की वजह से उन्हे दासी के कोक से जन्म मिला इसिकरण उन्हे कभी उनके हिस्से का मन सन्मान नहीं मिल पाया इसीउन्हे हमेशा क्षुद्र मन गया पांडु और धृतराष्ट्र के साथ ही विदुर भी हस्तिनापुर के गद्दी के वारिस थे लेकिन उन्हे गद्दी तो दूर अपने हिस्से का मन सन्मान भी नहीं मिल पाया । 
विदुर को युद्ध के समय प्रधानमंत्री बनाया गया लेकिन अपने भतीजों के इस युद्ध मे उन्होंने दूर रहना ही पसंद किया उन्होंने इस युद्ध मे लढने से मना कर दिया 

 विदुर जी के पास एक ऐसा धनुष था जिसके बल से संपूर्ण सेना का नाश कर सकते थे लेकिन अपने वचन के कारण वे उस युद्ध में शामिल नहीं हो पाए थे। विदुर एक बेहतरीन युद्ध नीतिकर थे वो अकेलेही युद्धध का परिणाम बदल सकते थे लेकिन उन्होंने इस युद्ध मे भाग नहीं लिया 

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