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Ashwathama mahiti in hindi- पराक्रमी वीर योद्धा अश्वत्थामा की संक्षिप्त जीवनी- life story of ashwatthama

अश्वत्थामा की संक्षिप्त जीवनी |biography of ashvatthama in hindi


अश्वत्थामा की माहिती/ अश्वत्थामा की जानकारी हिंदी मे


दोस्तों,  हमारी वेबसाइट मे आपका स्वागत है। इस वेबसाइट पर आपको महाभारत की कहानी (mahabharat ki kahani)समेत कई  सारी पौराणिक कहानिया पढ़ने मिलेंगी आज हम इस लेख के जरिये महाभारत के वीर योद्धा अश्वत्थामा की जीवनी (ashwthama ki mahiti)आपके सामने रखेंगे,

अश्वत्थामा की जीवनी


अश्वत्थामा का जन्म

अश्वत्थामा का जन्म द्वापरयुग में हुआ था। इनके पिता के नाम द्रोणाचार्य और माता का नाम कृपी था। द्रोणाचार्य को लम्बे समय तक कोई पुत्र प्राप्ति नहीं हुई तो वे भटकते भटकते हिमाचल की वादियों में पहुंच गए और वहां उन्होंने तपेश्वर महादेव की पूजा अर्चना की भगवान् शिव से पुत्र रत्न प्राप्ति का वर प्राप्त किया। 

जिसके कुछ दिन बाद उनको एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसने जन्म लेते ही अश्व की तरह गर्जना की और आकाशवाणी हुई की इसका नाम अश्वत्थामा होगा। क्योंकि उनकी गर्जना से चारों दिशाएं गूँज उठी थी। 

अश्वत्थामा के जन्म के बाद द्रोणाचार्य की आर्थिक स्तिथि बहुत ही दयनीय हो गयी थी। उनके घर पिने तक दूध तथा खाने को अन्न तक नहीं मिलता था। उनकी माताजी उन्हें आटे में पानी डालकर वह दूध उनको उनको पिलाती थी। 

अंत में द्रोणाचार्य ने अपने दोस्त के पास हस्तिनापुर जाने का निश्चय किया। वह उन्होंने अपने पास की शस्त्रविद्या का अध्ययन करने का काम शुरू किया। वहां आकर उसने कौरवों और पांडवों को शास्त्र और शस्त्र विद्या सिखाई तथा इनके साथ ही अश्वत्थामा को भी पढ़ाया।

वीर योद्धा अश्वत्थामा 


बचपन सही अश्वत्थामा वीर योद्धा था और श्रेष्ठ धनुर्धारी था।  अपनी पिताजी की तरह वह बलशाली योद्धा था। द्रोणाचार्य ने भी अपने बेटे को सभी प्रकार के अस्त्र और शस्त्र की पढ़ाई दी थी। 

पहले उनकी कुंतीपुत्र अर्जुन से काफी दोस्ती थी। लेकिन दुर्योधन से उन्हें खास लगाव था। कारण उनके परम मित्र थे। कौरव और पांडवों में जब टकराव शुरू हुवा तो वह बट गये। खुद को सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर समजने वाले अर्जुन से वह दूर हो और दुर्योधन के करीब हो गए। 

उनके पिताजी द्रोणाचार्य अर्जुन को अपना प्यारा शिष्य मानते रहे और कर्ण को हमेशा दुजभाव से देखते रहे, क्योंकि वह उनका जनम क्षत्रिय कुल नही हुवा था।

 पिताजी की यह बात उनको बड़ी अखरती थी। कर्ण के साथ हुए अन्याय ने अश्वथामा को कर्ण के प्रति लगाव उत्पन्न हुवा। अर्जुन के खिलाफ जाने के बीज यहाँ से ही बुने गए।

उन्होंने महाभारत कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ा। उसके पिता द्रोणाचार्य भी कौरवों की तरफ से लड़ रहे थे। अश्वत्थामा को पांडवों को हराने के लिए कौरवों की जरुरत नहीं थी बल्कि वो अकेला ही उन सब पर भारी था। तथा युद्ध में एक बार द्रोणाचार्य तथा अश्वत्थामा दोनों पांडवों पर भारी पड़ गए थे।

पिता की हत्या- गुरु द्रोणाचार्य वध 

महाभारत युद्ध मे गुरु द्रोणाचार्य अकेलेही पांडवों पर भारी पड रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने सोचा की इनको बल से नहीं छल से रोका जा सकता है। 

श्रीकृष्ण तुरंत भागकर धर्मराज युधिष्ठिर के पास गए और कहा की आप गुरु द्रोण से कहो की अश्वत्थामा मर गया। पहले तो युधिष्ठिर तैयार नहीं हुआ लेकिन श्रीकृष्ण के समझने पर बाद में उसने तेज आवाज में घोषणा की अश्वत्थामा युद्ध में मारा गया।

 इतना सुनते ही द्रोणाचार्य दौड़े और धर्मराज युधिष्ठिर के पास जाकर बोले क्या यह सत्य है की जो अभी तुमने बोला। तो युधिष्ठिर ने कहा हाँ सत्य है लेकिन अश्वत्थामा नाम का हाथी मारा गया। 

जब युधिष्ठिर ने हाथी का नाम लिया उस वक्त श्रीकृष्ण ने शंख बजा दिया जो हाथी का नाम द्रोणाचार्य को सुनाई नहीं दिया। 

द्रोणाचार्य को बहुत ज्यादा दुःख हुआ तथा दुखी होकर उन्होंने अपने हथियार डाल दिए। उनको निहत्था देखकर द्रुपद के पुत्र दृृष्टदुन्य ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया। 

इंतकाम की आग 

जब इस बात का पता अश्वत्थामा को चला तो वह अत्यधिक क्रोधित हुआ और उसने ठान लिया की वह पांचो पांडवों को मार डालेगा। 

अश्वत्थामा क्रोधित अवस्था में ही उनके शिविर की तरफ गया और उसने द्रोपदी के पांच पुत्रों को पांच पांडव समझकर मार डाला। 

जब यह बात द्रोपदी को पता चली तो उसने पांचो पांडवों को उसे पकड़ के लाने को कहा। सभी पांडव श्रीकृष्ण के साथ उसको पकड़ने चले पड़े। अश्वत्थामा तथा पांडवों के बिच छोटा सा युद्ध हुआ। 

अश्वत्थामा अपने पिता की छल से मृत्यु होने के कारण अत्यधिक क्रोधित था। उसने क्रोध में आकर पांडवों पर ब्रम्हास्त्र छोड़ दिया इधर से अर्जुन ने भी ब्रम्हास्त्र छोड़ दिया। 

लेकिन ऋषि मुनियों के समझने पर अर्जुन ने तो अपना ब्रम्हास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा को वापस लेना नहीं आता था। 

तो उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के पेट में पल रहे उसके बेटे पर वो ब्रम्हास्त्र छोड़ दिया।

 तब श्रीकृष्ण क्रोधित हो उठे और बोले की तुमने एक निर्दोष की हत्या की है और जब तुमको ब्रम्हास्त्र वापस लेना ही नहीं आता तो तुमको इसे चलने का हक भी नहीं होना चाहिए।

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श्रीकृष्ण का श्राप 

श्रीकृष्ण ने कहा की ये जो तुम्हारे माथे पर मणि है इसको तुम निकाल दो अब तुम इसको धारण करने के लायक नहीं रहे। 

मणि अश्वत्थामा के जन्म से उसके माथे पर लगी हुई थी जो उसका सुरक्षा कवच था। इतना सुनते ही अश्वत्थामा घबरा उठा और भागने की कोशिश करने लगा।

लेकिन श्रीकृष्ण ने जबरदस्ती उसकी मणि निकल ली और उसको श्राप दे दिया की वह 5000 सालों तक इस पृथ्वी पर बेसहारा विचरण करता रहेगा और कोई उसको खाने को अन्न तक नहीं देगा। 

श्रीकृष्ण का उशाप

श्रीकृष्ण का शाप सूनकर अश्वत्थामा को पछतावा हुवा। वो श्रीकृष्णसे क्षमा मांगने लगे. श्रीकृष्ण परम विष्णु देव के अवतार है यह बात अश्वथामा जान गया। 

उसने श्रीकृष्ण से दया की भीख मांगी। तब श्रीकृष्ण ने बताया कि उनके दसवे अवतार कल्कि में वो उसे मुक्ति देंगे। 


कलियुग समाप्त करने के लिए मैं दसवा अवतार लूंगा। एक प्रचंड युद्ध होगा उसमे तुम्हे तुम्हारा तेज प्राप्त होगा। तुम मेरे सहायक रहोगे।उस युद्ध मे लढने के लिए मैन तुम्हे चुना है। तब तब तुम्हे कलियुग में नरक यातना सहन करते जीना पड़ेगा।


अश्वत्थामा कलियुग मे जीवन 

तब से लेकर अश्वत्थामा आज तक इस पृथ्वी पर घूम रहे हैं। जगह जगह उनको देखे जाने के किस्से सुनने को मिलते हैं। 

कहा जाता है की मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर असीरगढ़ का किला है इस किले में स्थित शिव मंदिर में अश्वत्थामा को पूजा करते हुए देखा गया है। लोगो का कहना है की अश्वत्थामा आज भी इस मंदिर में पूजा करने आते हैं। 

अश्वत्थामा पूजा करने से पहले किले में स्थित तालाब में पहले नहाते हैं। अश्वत्थामा मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के गौरीघाट (नर्मदा नदी) के किनारे भी देखे जाने का उल्लेख मिलता है। लोगो का कहना है की वो यहाँ अपने माथे से निकल रहे रक्त के दर्द से कराहते हैं। 

तथा स्थानीय लोगो से वो तेल और हल्दी मंगाते हैं वहां लगाने के लिए। इनको मध्यप्रदेश के जंगलो में भी भटकते हुए देखा गया है। 


आशा है आपको हमारा है लेख- अश्वत्थामा की जीवनी पसंद आया होगा ऐसेही की सारे लेख- महाभारत की कहानी  और व्हाट्सप्प के स्टेटस- शुभाकांनाए के पोस्ट इस साइट पर उपलब्ध है उन्हे भी जरूर देखे 

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1 टिप्पणियाँ

  1. 5000 नहीं 3000 वर्षों का श्राप दिया था और गुरु द्रोणाचार्य का वध राजा द्रुपद के पुत्र दृष्टदुम्न ने की थी शिखण्डी ने नहीं

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